क्या वो एक वेश्या थी ?

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नवीन दत्ता अपने दोस्त और मातहत काम करने वाले शान्ति दास के साथ बस से शाहदरा पहुंचा । दोनों गली तेलियान मे पहुंचकर कमल सरीन का मकान ढूंढने लगे । ये बेहद संकरी सी गली थी और हर दूसरे तीसरे घर मे दुकान खुली थी । दुकानदारों ने जहां तहां एन्क्रोचमेंट कर रखी थी । गली के अन्दर कुछ दूर सरीन का मकान मिल गया । ये मकान गली के दूसरे मकानों से कुछ बड़ा था । देखते ही पता चलता था कि रहने वाले सम्पन्न हैं । निर्माण और सजावट पर काफी पैसा लगाया गया था । लकड़ी के दरवाजे आधुनिक डिजाइन के बने थे जिन पर बेहतरीन डिजाइन के ही सुनहरे कुंडे और हैंडल लगे थे । वायदे के मुताबिक सरीन घर पर ही था और दरवाजे की घंटी बजाने पर उसने खुद आकर दोनों का स्वागत किया और दोनों को लेकर ऊपर वाली मंजिल पर बने कमरे मे ले गया । कमरे मे बेहतरीन अपहोल्स्टरी वाला सोफा सैट डला था और वाइन कलर की सैन्टर टेबल थी जिस पर लगा मोटे काले ग्लास का टॉप बड़ा सुन्दर दिखता था । टेबल को खिसका कर आगे पीछे करने को चारों पायों मे पहिये कुछ इस तरह लगे के जो बाहर से स्टील के ठोस गोले जैसे दिखते थे ।

Full Novel

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क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-1)

नवीन दत्ता अपने दोस्त और मातहत काम करने वाले शान्ति दास के साथ बस से शाहदरा पहुंचा । दोनों तेलियान मे पहुंचकर कमल सरीन का मकान ढूंढने लगे । ये बेहद संकरी सी गली थी और हर दूसरे तीसरे घर मे दुकान खुली थी । दुकानदारों ने जहां तहां एन्क्रोचमेंट कर रखी थी । गली के अन्दर कुछ दूर सरीन का मकान मिल गया । ये मकान गली के दूसरे मकानों से कुछ बड़ा था । देखते ही पता चलता था कि रहने वाले सम्पन्न हैं । निर्माण और सजावट पर काफी पैसा लगाया गया था । लकड़ी के ...और पढ़े

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क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-2)

वक्त गुजरता गया । सरीन का नवीन और शांति के साथ मिलना जुलना जारी रहा । नवीन भूला नहीं कि कैसे सुरीन ने उसे पिलाकर आउट कर दिया था । एक दिन सरीन ने शहर के बाहर बने अपने फार्म हाउस मे नवीन और शांति दोनों को बुलाया । दरअसल देहरादून से एक नौजवान लड़की आयी हुई थी जो शांति के दोस्त नरेश काला के पास ठहरी हुई थी । नरेश का रंग काला था तो उसके नाम के साथ काला सरनेम की तरह जुड़ गया था । नरेश काला उससे धंधा करा रहा था । काला ने ही ...और पढ़े

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क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-3)(अन्तिम भाग)

अन्तिम भाग-3“आपको देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई अपना मिल गया हो” - वो ऐसे ही लिपटी हुई चलने । नवीन के अन्दर प्यार का सैलाब उमड़ रहा था । समय गुजरता रहा और इस दौरान दो बार नवीन और शांति उसे शांति के घर भी ले गये । वो नवीन को कभी मना नहीं करती थी । परन्तु जब शांति इच्छा जताता था तो हमेशा कह देती कि तुम तो मेरे भाई हो । शांति ने भी कभी ज्यादा जोर नहीं डाला । साथ घूमना फिरना तो चल ही रहा था । एक दिन नवीन निशा को लेकर ...और पढ़े

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