पंकेविर्ना सरो भाति सभा खलजनै विर्ना । कटुवणैविर्ना काव्यं मानसं विशयैविर्ना "।। "यानी सरोवर कीचड़ रहित हो तो शोभा देता है, दुष्ट मानव न हो तो सभा, कटु वर्ण न हो तो काव्य और विषय न हो तो मन शोभा देता है"। हम चाहे, तो इस श्लोक को मनुष्यता की संक्षिप्त अदृश्य परिभाषा मान सकते है। ज्यादातर दर्शन के ज्ञाता कहते है, जीवन को न समझना भी जीवन है, परन्तु उनकी नादानियों से जग जीवन को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सारा संसार आज कई तरह की मानव- नादानियों से त्रस्त हो रहा है, कहना न होगा हम भी कुछ इस तरह के हालातों से गुजर रहे है। इसका एक ही कारण है, इंसान का स्वयं को न समझने की कोशिश और बहुमूल्य जीवन को बिना मूल्यांकित किये जीना ।
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स्वयं का मूल्यांकन आत्मा के संदर्भ में - भाग 1
पंकेविर्ना सरो भाति सभा खलजनै विर्ना ।कटुवणैविर्ना काव्यं मानसं विशयैविर्ना "।।"यानी सरोवर कीचड़ रहित हो तो शोभा देता है, मानव न हो तो सभा, कटु वर्ण न हो तो काव्य और विषय न हो तो मन शोभा देता है"। हम चाहे, तो इस श्लोक को मनुष्यता की संक्षिप्त अदृश्य परिभाषा मान सकते है। ज्यादातर दर्शन के ज्ञाता कहते है, जीवन को न समझना भी जीवन है, परन्तु उनकी नादानियों से जग जीवन को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सारा संसार आज कई तरह की मानव- नादानियों से त्रस्त हो रहा है, कहना न होगा हम भी ...और पढ़े