जान–पहचानी गैल पर पैर अपने–आप इच्छित दिशा को मुड़ जाते थे। हरिविलास आगे था–पीछे कमला, उसके पीछे अपहरण किया गया लड़का तथा गैंग के तीन सदस्य और थे, यानी कुल छह जने। जिस समय वे ठिकाने से चले थे तब सामने पूरब में शाम का इन्द्रधनुष खिंचा था, अतÁ अनुमान था कि सबेरे पानी बरसेगा–‘संझा धनुष, सबरे पाकनी’। ठिकाने पर एक दिन भी सुस्ताते हुए न काट पाए थे कि मुखबिर की खबर आ गई थी–‘‘ठिकाने पर कभी भी घेरा पड़ सकता है। ऊपर का दबाव है इसलिए डी0आई0जी0 भÙा रहा है। दो जिलों की पुलिस का खास दस्ता एक नये डिप्टी को सौंप दिया है। नाक में दम कर रखा है हरामजादे ने।’’

Full Novel

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पार - महेश कटारे - 1

महेश कटारे - कहानी–पार 1 जान–पहचानी गैल पर पैर अपने–आप इच्छित दिशा को मुड़ जाते थे। हरिविलास आगे था–पीछे कमला, उसके पीछे अपहरण किया गया लड़का तथा गैंग के तीन सदस्य और थे, यानी कुल छह जने। जिस समय वे ठिकाने से चले थे तब सामने ...और पढ़े

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पार - महेश कटारे - 2

महेश कटारे - कहानी–पार 2 कमला मोहिनी में बँध उठी। घाटी और उसके सिर पर तिरछी दीवार की तरह उठे पहाड़ पर जगर–मगर छाई थी। जुगनुओं के हजारो–लाखों गुच्छें दिप्–दिप् हो रहे थे। लगता था जैसे भादों का आकाश तारों के साथ घाटी में बिखर गया है। चमकते–बुड़ाते जुगनू कमला को हमेशा से भाते हैं। सांझी में क्वार के पहले पाख में लड़कियाँ कच्ची–पक्की दीवार पर गोबर की साँझी बनाती थीं। दूसरी लड़कियाँ तो अपनी–अपनी पंक्ति तोरई के पीले लौकी के सफेद, या तिल्ली के दुरंगे फूलों से सजाती थीं, कमला अपनी पंक्ति में जुगनू चिपका देती, फिर ...और पढ़े

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पार - महेश कटारे - 3

महेश कटारे - कहानी–पार 3 अलसाता गिरोह चौक गया। कमला ने दीवार से टिकी ग्रीनर दुनाली झटके के साथ पकड़ ली। और कमर में बँधी बेल्ट से दो कारतूस निकाल तेजी के साथ बेरल में ठोंक दिए। अगले क्षण गिरोह खुले चबूतरे पर था। सबकेक आँख–कान टोह पर थे। अँधेरे में दुश्मन को गच्चा दिया जा सकता है तो दुश्मन भी अँधेरे का लाभ उठाकर घेर सकता है। मोर रह–रहकर कोंक उठते थे। संकेत, किसी के मंदिर की ओर ब.ढते जैसे थे। ‘‘देखो–देखो। वो बाटरी चमकी !’’ तरी के घने बबूल वन में कुछ चमककर बुझा ...और पढ़े

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पार - महेश कटारे - 4 - अंतिम भाग

महेश कटारे - कहानी–पार 4 बादल छँट जाने से सप्तमी का चन्द्रमा उग आया था। पार के किनारे धुँधले–से दिखाई देने लगे थे। तीनों उघाड़े होकर पानी में ऊपर गए। कमर तक पानी में पहुँच रामा ने गंगा जी का स्मरण कर एक चुल्लू पानी मुँह में डाला, उसके बाद दूसरा सिर से घुमाते हुए धार की ओर उछाल दिया। दो कदम और आगे ब.ढ रामा ने बाई हथेली तली से चिपकाई व दाहिनी मुट्ठी मथना के किनारे पर कस दी–‘‘जै गंगा मैया !’’ ‘‘जै गंगा मैया !’’ तीनों पैर–उछाल लेकर पानी की सतह पर औंधे ...और पढ़े

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