मैं यानि पवन पेसे से एक अकाउंटेंट, ऑफिस से निकल कर मैं पास के ही बस स्टॉप पे बस का इंतजार कर रहा था। ये वो दौर था जब देश अभी उतना डिजिटल नहीं हुआ था, और भगवन की कृपा से अभी फ़ोन नहीं लोग स्मार्ट हुआ करते थे। कुछ ही लोगो के पास कलर फ़ोन थे। आज महीने की पहली तारीख थी और पहली तारीख यानि तनख्वा का दिन। कॉलेज ख़त्म करके अभी मुझे कुछ ही महीने हुए थे नौकरी करते हुए, तो इस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता था। तभी जोरो की बारिश शुरू हो गई , और बस को आने

नए एपिसोड्स : : Every Tuesday

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अपना सा एक अजनबी

मैं यानि पवन पेसे से एक अकाउंटेंट, ऑफिस से निकल कर मैं पास के ही बस स्टॉप पे बस इंतजार कर रहा था। ये वो दौर था जब देश अभी उतना डिजिटल नहीं हुआ था, और भगवन की कृपा से अभी फ़ोन नहीं लोग स्मार्ट हुआ करते थे। कुछ ही लोगो के पास कलर फ़ोन थे। आज महीने की पहली तारीख थी और पहली तारीख यानि तनख्वा का दिन। कॉलेज ख़त्म करके अभी मुझे कुछ ही महीने हुए थे नौकरी करते हुए, तो इस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता था। तभी जोरो की बारिश शुरू हो गई , और बस को आने ...और पढ़े

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अपना सा एक अजनबी - २

मैंने कई बार उस मैसेज को पढ़ा। मुझे समझ नहीं आया क्या करू कुछ रिप्लाई करू या ना मेरी एक बुरी आदत थी मुझे लोगो के मैसेज या खत पढ़ने में बहुत मजा आता था।मैंने सोचा रिप्लाई ना सही चलो पुराने मैसेज ही पढ़ ले। मैं मैसेज चेक करने लगा पर संजना का कोई और मैसेज नहीं था। मुझे लगा शायद मुझे फ़ोन देने से पहले उसने डिलीट कर दिया हो। मैंने फ़ोन रखा और सो गया। अगले दिन ऑफिस जाते वक़्त मैं उसका भी फ़ोन ले कर ऑफिस गया की क्या पता उसका फ़ोन आये पैसे लौटने को। ...और पढ़े

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अपना सा एक अजनबी - ३

मैसेज तो मैंने सेंड कर दिया पर उसके बाद मेरी धड़कने तेज हो गई। इस बात की तो ख़ुशी की मेरा ये मैसेज उस बेचारी को थोड़ी तो ख़ुशी देगा जो ना जाने कब से दीपक के एक मैसेज का इंतजार कर रही थी। पर इस ख़ुशी के साथ साथ मन में एक डर भी था की कहीं मैंने कुछ गलत तो नहीं ना कर दिया क्युकी कुछ तो ज़रुर हुआ होगा इन दोनों के बीच तभी तो दीपक इसके मैसेज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। खैर अब जो भी हो अब तो कर दिया मैसेज अब ...और पढ़े

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