अंतिम फ़्रांसीसी उपनिवेश के अंतिम अवशेषों पर, पूरे चाँद की रात का पहला पहर था जब यह द्घटना द्घटी। समुद्र की काली और खुरदरी चट्टानों पर चिपके केकड़े किनारे की ओर सरकना शुरू कर चुके थे। उस रात और भी बहुत कुछ विलक्षण द्घटा था, या यूं कहें, ऐसा कुछ जो अक्सर नहीं होता। मसलन उस रात पेड़ों की शाखों पर उलटा लटकने से पहले चमगादड़ों ने इतना ज्यादा पेशाब किया था, कि सुबह उसके गीलेपन को देखकर किसानों में भय पफैल गया था कि आकाश से अगर इतनी अधिक ओस गिरी तो उनकी पफसलें नष्ट हो जाएँगी। उसी रात तीन जवान लड़कियाँ टमाटर की चटनी में डूब कर मर गयीं। पानी की बूंदें खिड़की के काँच पर गिरने के बाद ऊपर की ओर जाने लगीं और कई चुम्बनों में विस्पफोट हो गए। चमकती चाँदनी के बीच पफंसी हवाओं में ताबीजों से छूटे हुए अनेक अमंगल कामनाओं से मंत्राब( जादू तैर रहे थे जिनकी हत्यारी पफुसपफ़साहटें शास्त्राीय राग में गाती हुयी चिड़ियों की तरह लग रहीं थीं।

Full Novel

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दास्तानगो - 1

दास्तानगो प्रियंवद अंतिम फ़्रांसीसी उपनिवेश के अंतिम अवशेषों पर, पूरे चाँद की रात का पहला पहर था जब यह द्घटी। समुद्र की काली और खुरदरी चट्टानों पर चिपके केकड़े किनारे की ओर सरकना शुरू कर चुके थे। उस रात और भी बहुत कुछ विलक्षण द्घटा था, या यूं कहें, ऐसा कुछ जो अक्सर नहीं होता। मसलन उस रात पेड़ों की शाखों पर उलटा लटकने से पहले चमगादड़ों ने इतना ज्यादा पेशाब किया था, कि सुबह उसके गीलेपन को देखकर किसानों में भय पफैल गया था कि आकाश से अगर इतनी अधिक ओस गिरी तो उनकी पफसलें नष्ट हो जाएँगी। ...और पढ़े

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दास्तानगो - 2

दास्तानगो प्रियंवद २ राजाओं, नवाबों, सामंतों के ब्राह्मण मुंशी या दीवान उनकी जागीरों की आमदनी और खर्च का हिसाब भी रखते थे। वे इन जागीरों की देखभाल या तो ठीक से कर नहीं पाते थे या पिफर उसकी आमदनी और हिसाब को जानबूझ कर धुंधला बनाए रखते थे जिससे कि उसका एक बड़ा हिस्सा उनके पास भी आ सके। यह न हो तब भी, रिआया से पैसे की वसूली एक कठिन काम था। इसके लिए क्रूरता, निर्ममता के साथ कुशलता और योग्यता भी चाहिए थी, जो इन निकम्मे और पुराने पड़ चुके मुंशियों के पास नहीं थी। उनके पास ...और पढ़े

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दास्तानगो - 3

दास्तानगो प्रियंवद ३ जब दरवाजे पर दस्तक हुयी शाम का धुंधलका शुरू हो गया था। द्घर इतना बड़ा और हुआ था कि दरवाजे की दस्तक पत्तियों के गिरने या लहरों के शोर में खो जाती थी। आने वाला किसी और तरह से उन्हें बुला सके, इस पर उन दोनों ने कभी नहीं सोचा, क्योंकि ...और पढ़े

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दास्तानगो - 4

दास्तानगो प्रियंवद ४ दरवाजे पर तेज दस्तक हुयी। यह लड़की की दस्तक से अलग थी। इसमें संकोच और विनम्रता थी। यह कई हाथों की धमक से भरी थी। द्घोड़ों की हिनहिनाहट, खुरों के पटकने की, लगाम पफटकारने की आवाजें भी थीं। वे दोनों अपने कमरे में आ गए थे। पाकुड़ कच्चा रास्ता पार करके आया। उसने दरवाजे की खिड़की खोली। अंदर पहले एक सिपाही आया, पिफर दूसरा। अंदर आकर वे दोनों एक ओर तन कर खड़े हो गए। कुछ देर बाद तीसरा आदमी अंदर आया। यह बड़ा अपफसर था। वर्दी में था। उसके कंधों पर पीतल के चमकते हुए ...और पढ़े

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दास्तानगो - 5

दास्तानगो प्रियंवद ५ हिनहिनाहट, कार के इंजन, आदमियों की चीखें, लगाम पफटकारने और तराशे हुए खुरों के पटकने की खत्म हो जाने के बाद पाकुड़ ने बाहर के दरवाजे की छोटी खिड़की बंद की पिफर कमरे में आया। उसने मेज पर रखे खाली गिलास उठा लिए। पफर्श पर शैम्पेन की ...और पढ़े

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दास्तानगो - 6 - अंतिम भाग

दास्तानगो प्रियंवद ६ एटिक में अब अंधेरा था। बुढ़िया ने चरखे पर काता हुआ सूत समेटना शुरू कर दिया अंधेरे में ही वामगुल स्टूल पर बैठ गया। पुल अभी बची हुयी चांदनी में था। दूरबीन से देखा उसने। सिपाहियों के द्घोड़े़ पहुंच चुके थे। द्घोड़ों के खुरों के नीचे इंसानी शरीर थे। चीखते हुए वे इधर-उधर भाग रहे थे। भागते हुए भी रुककर चावल बटोर रहे थे। सवारों ने कमर में पफंसे चाबुक निकालकर पफटकारना शुरू कर दिया था। हर चाबुक उनकी नंगी पीठों पर खून की एक लकीर छोड़ रहा था। पुल के नीचे से कुछ आदमी ऊपर ...और पढ़े

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