घटना सिर्फ एक बार घटती है जब अपनी प्रामाणिकता में वस्तुतः घट रही होती है। वही घटना स्मृति में बार-बार घटती है। विचारों में भिन्न तरह से घटती है। विचारों के अनुसार घटना को महसूस करना उतना ही सच होता है, जितना प्रामाणिकता में घटना का वस्तुतः घटित होना। घटना का परिणाम भले ही उस एक मुश्त समय का अनुभव हो लेकिन विचार के आधार पर घटना का परिप्रेक्ष्य, उद्देश्य, कारण, महत्व अलग असर लिये होता है। यह असर अक्सर सम्पूर्ण जीवन का सबूत बन जाता है। वे परिणाम, प्रभाव, आभास, अनुभूतियाँ, जीवन को बनाने-बिगाड़ने में जिनकी खास भूमिका नहीं होती, स्मृति से डिलीट हो जाती हैं लेकिन वे संवाद और दृश्य जो जीवन को एक श्रेणी देते हैं अक्सर, खास कर अंतिम समय में ऐसे सक्रिय हो जाते हैं कि कमजोर स्मरण शक्ति वाले व्यक्ति हतप्रभ हो जाते हैं, उन्हें कितना अधिक याद है।

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बना रहे यह अहसास - 1

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 1 घटना सिर्फ एक बार घटती है जब अपनी प्रामाणिकता में वस्तुतः घट होती है। वही घटना स्मृति में बार-बार घटती है। विचारों में भिन्न तरह से घटती है। विचारों के अनुसार घटना को महसूस करना उतना ही सच होता है, जितना प्रामाणिकता ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 2

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 2 अस्पताल से अम्मा घर आ गईं। जिस शोचनीय दशा में गई थीं वापसी चमत्कार की तरह है। अनगढ़ लेकिन बहुत बड़ा, पुरानी बुनावट का लेकिन बहुत खुला, हवेली जैसा यह पुश्तैनी घर माताराम की क्रूरता, पप्पा के निरादर, सनातन और पंचानन की बेवकूफियों के कारण सदा अजनबी लगता रहा है। सनातन कभी बता रहा था एक बिल्डर बाजार मूल्य पर यह घर खरीद कर बहु मंजिला भवन बनाने का प्रस्ताव दे रहा है। अम्मा ने तब प्रतिक्रिया नहीं दी थी। घर वापसी पर सल्तनत जैसा भाव जागृत हुआ। इच्छा हुई घर के ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 3

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 3 दिन बीत रहे हैं। सर्जरी की चर्चा नहीं। भरा है अम्मा का कभी फैसला नहीं ले पाई। न अपने लिये न दूसरों के लिये। यह पहला फैसला है। पैसा है इसलिये ले पाईं वरना न लेती। पूतो का रुख समझ में नहीं आ रहा। भारतीय परिवारों की अज ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 4

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 4 फेमिली पेंशन। सनातन, अम्मा को बैंक ले गया था - ‘‘अम्मा, कितना निकालना है ?’’ 13 ‘‘ एक महीने की पूरी पिनसिन। देखें इतना रुपिया कैसा लगता है।’’ पेंशन लेकर अम्मा मजबूत चाल से घर आईं। हाव-भाव में दृढ़ता। चेहरे में गौरव। अब अपनी मर्जी से जियेंगी। लेकिन वाल्व खराब ..................। तैयारी यामिनी की। दिल्ली जा रही है सरस। गौतमजी ने स्पष्ट कहा ‘‘यामिनी, तुम अम्मा के घर की चाकरी बजाने नहीं जाओगी।’’ ‘‘अम्मा की सर्जरी होनी है। मान-अपमान भूलकर उनकी मदद करनी चाहिये। उनके न रहने पर वैसे भी कोई नहीं ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 5

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 5 अम्मा को एडमिट कर लिया गया। उनके साथ मरीज की तरह व्यवहार लगा। वर्दीधारी कर्मचारी ने स्टाफ और भर्ती मरीजों के लिये आरक्षित लिफ्ट से उन्हें तीसरी मंजिल के आवंटित कक्ष में पहुँचा दिया। दीवार से लेकर बिस्तर तक सफेद रंग में एक सार हुआ सुंदर कक्ष। अम्मा को राजसी बोध हुआ। इतनी समर्थ हैं कि अपने लिये थोड़ा ठाट जुटा सकती हैं। बंगलों में रही हैं पर पप्पा ने समर्थ होने का बोध कभी नहीं होने दिया। मरीज के कमरे में दो व्यक्ति ही रह सकते हैं। पात्रता के लिये पर्ची ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 6

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 6 रूम में यामिनी और व्याख्या हैं। रविवार होने से व्याख्या दोपहर में गई है। कर्मचारी लंच दे गया। भरी हुई थाली देख कर अम्मा अकबका जाती हैं। ‘‘गूड़ा, इस अस्पताल में मरीज को गले तक ठूँसा देते है क्या ?’’ ‘‘तुम्हें जितनी कैलोरी लेनी है उसके अनुसार नाश्ता और खाना दिया जाता है अम्मा।’’ ‘‘इच्छा होती है इस थाली को खिड़की से बाहर फेंक दें और आम के रस में रात की बासी रोटी डुबा कर खायें। दादा भाई हमको सबसे अच्छा आम देते थे।’’ 21 अम्मा के जीवन के अंतिम लेकिन ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 7

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 7 यशोधरा और यमुना का आगमन। भाईयों का रुख जानती हैं इसलिये अपने-अपने को नहीं लाना चाहती थीं लेकिन नागचैरीजी और पयासीजी मेट्रो की चर्चा सुन चुके हैं। सुपुत्रियाँ निष्ठा दिखायेंगी ये लोग मेट्रो की सवारी करेंगे। सनातन पर्ची लेकर अम्मा के रूम से लाँबी में आया और वही पर्ची लेकर नागचैरीजी अम्मा के रूम में गये। रसिक मिजाज नागचैरीजी अम्मा से सम्बोधित हुये - ‘‘बड़ी फिट फाट हैं। बीमार नहीं लग रही हैं।’’ अम्मा अनकी टिप्पणी भूली नहीं हैं। हाथ से बैठने का संकेत कर खामोश रही आईं। नागचैरीजी ने अवंती से ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 8

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 8 मध्य रात्रि। सैडेशन के प्रभाव में शक्तिविहीन अम्मा। पंचानन सोफे पर यामिनी पर सोई है। कल इन लोगों को बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। अममा ने नींद में व्यवधान देना उचित न समझा। लघुशंका के लिये उठीं और गिर गईं। अस्पताल वाली संदिग्ध नींद। धमक सुन यामिनी उठ गई ‘‘पचानन, अम्मा गिर गई हैं ........ देखो .............. जल्दी ..............।’’ पंचानन अकबका कर उठा ‘‘कहता था सर्जरी न कराये। लकवा मार गया कि क्या हो गया।’’ ‘‘ड्यूटी रूम में कोई होगा। काँल करो।’’ यामिनी ने टेलीफोन की ओर संकते किया। काँल सुन, बाधित नींद ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 9

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 9 चार दिन आई0सी0सी0यू0 में बीते। अब रूम में शिफ्ट होंगी। टेलीफोन पर आई - हेड सर्जन से उनके चैम्बर में मिल लें। पंचानन सर्वेसर्वा। सनातन ने उसे भेजा। हेड सर्जन बोले - ‘‘मिसेस वेद पूरी तरह ठीक है। केस डिफिक्रल्ट था। ओल्ड एज और डाइबिटीज। मिड सेवेनटीज के मरीज सर्जरी कराने की हिम्मत नहीं करते हैं लेकिन मिसेस वेद ने बहुत हिम्मत दिखाई। हम डाँक्टर्स को उनसे हौसला मिला कि हम लोग इस उम्र के मरीजों को इलाज के लिये किस प्रकार प्रेरित करें। आपकी मदर अच्छा कोआपरेट करती हैं। पेशेन्ट के ...और पढ़े

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बना रहे यह अहसास - 10 - अंतिम भाग

बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 10 पंचानन अस्पताल न जाकर होटेल आया। अपने कमरे में गया। एहतियात से अम्मा के हस्ताक्षरयुक्त विदड्रावल फार्म को थरथराती ऊॅंगलियों से थाम लिया। फार्म में अम्मा का कातर चेहरा नजर आने लगा। उनका युग, उनकी जिंदगी, उनके अभाव का बोध हुआ। ऊॅंगली के पोर से हस्ताक्षर को छुआ। लगा उसके भीतर आज भी वह पुत्र मौजूद है जो सरस के मार्गदर्शन में खो गया था। उसने फार्म को चिंदी-चिंदी कर डस्टबिन में फेंक दिया। चमत्कार सा हुआ। लगा छाती पर भार था जो ठीक अभी उतर गया। स्नायुओं का खिंचाव, मस्तिष्क पर ...और पढ़े

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