क्षत्राणी--कुंती की व्यथा

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"मुझे राज्य के छिन्न जाने का दुख नही है।पुत्रो के जुए मे हार जाने और वनवास जाने का भी बिल्कुल दुख नही है।परंतु भरी सभा मे मेरी पुत्र वधू का जो अपमान हुआ है और रोते हुए द्रौपदी ने कौरव सभा मे जो कटु वचन सुने,वही मेरे लिए महान दुख का कारण बन गया है।"शकुनि की सलाह पर दुर्योधन ने पांडवों को जुआ खेलने का निमन्त्रण दिया था। पांडव जुए में अपने को, अपने राज को औऱ पत्नी द्रोपदी को भी हार गए थे।तब भरी सभा मेे दुर्योधन अट्टहास करके विदुुुर से बोला"तुम पांडवो की प्रियतमा द्रोपदी को यंहा

Full Novel

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क्षत्राणी--कुंती की व्यथा - (भाग 1)

"मुझे राज्य के छिन्न जाने का दुख नही है।पुत्रो के जुए मे हार जाने और वनवास जाने का भी दुख नही है।परंतु भरी सभा मे मेरी पुत्र वधू का जो अपमान हुआ है और रोते हुए द्रौपदी ने कौरव सभा मे जो कटु वचन सुने,वही मेरे लिए महान दुख का कारण बन गया है।"शकुनि की सलाह पर दुर्योधन ने पांडवों को जुआ खेलने का निमन्त्रण दिया था। पांडव जुए में अपने को, अपने राज को औऱ पत्नी द्रोपदी को भी हार गए थे।तब भरी सभा मेे दुर्योधन अट्टहास करके विदुुुर से बोला"तुम पांडवो की प्रियतमा द्रोपदी को यंहा ...और पढ़े

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क्षत्राणी--कुंती की व्यथा(अंतिम किश्त भाग 2)

द्रौपदी सभा मे जो भी बात कह रही थी।पांडवो की तरफ देखते हुए कह रही थी।पांडवो को जितना दुख की दूर्दशा देख कर हो रहा था।उतना राज व अन्य वस्तएं छिन्न जाने पर भी नही हुआ था।पांडवो को देखकर दुशासन,"ओ दासी,ओ दासी कहते हुए द्रौपदी को और भी जोर से घसीटने लगा।कर्ण और शकुनी उसकी प्रशंसा करके उसका उत्साहवर्धन कर रहे थे।दुशासन ने द्रोपदी को बीच सभा मे लाकर छोड़ दिया।द्रौपदी सभा मे खड़े होते हुए बोली,"युधिष्ठर ने हारने के बाद मुझे दांव पर लगाया था।क्या हारा हुआ व्यक्ति किसी को दांव पर लगा सकता है?"पांडवो का दुख और ...और पढ़े

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