"प्रेम की उम्र के चार पढाव"मनीषा कुलश्रेष्ठ प्यार ढाई अक्षर का शब्द हैं लेकिन इसकी अनुभूति सबको भिन्न भिन्न होती हैं | सुबह की ओस का चुम्बन करती किशोर उम्र जब इस छुवन को महसूस करती हैं तो अलग भाव प्रस्फुटित होते हैं | कमसिन उम्र के सूरज का ताप जब चढ़ता जाता हैं प्रेम का पढाव और सोच का अहसास भी बदलता जाता हैं | प्रेम के इस पढाव पर उम्र ओस से तृप्त नही होती बल्कि घूँट भर प्रेम चाहिए होता हैं| अपने भीतर पर प्रेम को महसूस करती मन की तरंगे समुन्दर के ज्वर भाटा सी जिद्दी भावो
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प्रेम की उम्र के चार पढ़ाव - काव्यसंग्रह मनीषा कुलश्रेष्ठ
"प्रेम की उम्र के चार पढाव"मनीषा कुलश्रेष्ठ प्यार ढाई अक्षर का शब्द हैं लेकिन इसकी अनुभूति सबको भिन्न भिन्न हैं | सुबह की ओस का चुम्बन करती किशोर उम्र जब इस छुवन को महसूस करती हैं तो अलग भाव प्रस्फुटित होते हैं | कमसिन उम्र के सूरज का ताप जब चढ़ता जाता हैं प्रेम का पढाव और सोच का अहसास भी बदलता जाता हैं | प्रेम के इस पढाव पर उम्र ओस से तृप्त नही होती बल्कि घूँट भर प्रेम चाहिए होता हैं| अपने भीतर पर प्रेम को महसूस करती मन की तरंगे समुन्दर के ज्वर भाटा सी जिद्दी भावो ...और पढ़े