एक वैभवशाली राज्य में, अरे,श्याम...... आज ठीक से मृदंग क्यो नही बजा रहे,आज तुम्हारे सुर ठीक से क्यो नही लग रहे, कमलनयनी बोली। आज मेरा मन थोड़ा विचलित है,राजनर्तकी जी,श्याम बोला। क्यो विचलित है? अच्छा चलो तो मेरे साथ नृत्य का अभ्यास करो, कमलनयनी बोली। श्याम कमलनयनी के साथ नृत्य का अभ्यास करने लगता है!! "कमलनयनी, पल्लव देश के राजा कर्णसेन की राजनर्तकी है,कर्णसेन , कमलनयनी से बहुत प्रेम करते हैं,उसे अपनी प्रेमिका मानते हैं लेकिन कमलनयनी उनसे सिर्फ प्रेम का दिखावा करती है ताकि उसका राजनर्तकी का पद बना रहे,उसे सिर्फ अपने एशो-आराम का लोभ
Full Novel
तृप्ति - भाग (१)
एक वैभवशाली राज्य में, अरे,श्याम...... आज ठीक से मृदंग नही बजा रहे,आज तुम्हारे सुर ठीक से क्यो नही लग रहे, कमलनयनी बोली। आज मेरा मन थोड़ा विचलित है,राजनर्तकी जी,श्याम बोला। क्यो विचलित है? अच्छा चलो तो मेरे साथ नृत्य का अभ्यास करो, कमलनयनी बोली। श्याम कमलनयनी के साथ नृत्य का अभ्यास करने लगता है!! "कमलनयनी, पल्लव देश के राजा कर्णसेन की राजनर्तकी है,कर्णसेन , कमलनयनी से बहुत प्रेम करते हैं,उसे अपनी प्रेमिका मानते हैं लेकिन कमलनयनी उनसे सिर्फ प्रेम का दिखावा करती है ताकि उसका राजनर्तकी का पद बना रहे,उसे सिर्फ अपने एशो-आराम का लोभ ...और पढ़े
तृप्ति - भाग (२)
प्रात: काल का समय ___ मंदिर का प्रांगण, अभी सूरज ने अपना प्रकाश चारों तरफ नहीं है,सब जगह साज-सजावट चल रही है, मंदिर में आज देवी दुर्गा की नई मूर्ति की स्थापना होनी है जो कि पड़ोसी राज्य के राजा ने मित्रता-स्वरूप भेंट की है,उसी का समारोह है,राज्य के सभी वासियों के लिए भोज-भण्डारा है,राजा का आदेश है कि किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलना चाहिए। दिन चढ़े तक प्रजा उपस्थित हो गई, सुबह से कढाव चढ़ गये थे प्रजाजन के लिए खाने-पीने की उचित ब्यवस्था थी,सब खाने का आनंद लें रहे थे, तभी घोषणा हुई ...और पढ़े
तृप्ति - भाग (६)
गौरीशंकर और श्याम के बीच की बातें सौभाग्यवती ने सुन ली थीं, रात्रि में भोजन के बाद सौभाग्यवती ने से कहा कि आपने कमल के लिए किवाड़ क्यो नही खोले, आपकी मनोदशा से मैं भली-भांति परिचित हूं, आपका प्रेम आपको पुकार रहा है और आप उसे अनदेखा, अनसुना कर रहे हैं,आपके हृदय में जो कमलनयनी के लिए अपार प्रेम है,वो मुझसे छुपा नहीं है और कमलनयनी ने आपके प्रेम में ही पड़कर इस गृह में आना शुरू किया था क्योंकि कमलनयनी के नयनों में जो प्रेम आपके लिए दिखता था वो पवित्र और शुद्ध था, आपने ऐसा क्यों किया,स्वामी!! ...और पढ़े
तृप्ति - भाग (३)
रोते हुए कमलनयनी मंदिर से वापस आ गई,उसे आज बार बार रोना आ रहा था,वो कितने अच्छे मन से गई थी लेकिन पुरोहित जी ने दूर से ही देखकर बाहर निकाल दिया,इन सबका वो पुरोहित जी से उत्तर चाहती थी और उसने मन बना लिया को वो उनके निवास जाकर इस प्रश्न का उत्तर पूछेगी क्योंकि मंदिर में तो उसका प्रवेश निषेध है और महल में उनको अपने कक्ष में बुलाना उचित नहीं होगा। उसने मयूरी से पता करवाया कि पूजा-पाठ करके वो कब अपने निवास को निकलते हैं,हम तभी पहुंचेंगे, उनके घर, मयूरी सब कुछ पता करके ...और पढ़े
तृप्ति - भाग (५)
रोते हुए कमलनयनी मंदिर से वापस आ गई,उसे आज बार बार रोना आ रहा था,वो कितने अच्छे मन से गई थी लेकिन पुरोहित जी ने दूर से ही देखकर बाहर निकाल दिया,इन सबका वो पुरोहित जी से उत्तर चाहती थी और उसने मन बना लिया को वो उनके निवास जाकर इस प्रश्न का उत्तर पूछेगी क्योंकि मंदिर में तो उसका प्रवेश निषेध है और महल में उनको अपने कक्ष में बुलाना उचित नहीं होगा। उसने मयूरी से पता करवाया कि पूजा-पाठ करके वो कब अपने निवास को निकलते हैं,हम तभी पहुंचेंगे, उनके घर, मयूरी सब कुछ पता करके ...और पढ़े
तृप्ति - भाग (७)
गौरीशंकर के निवास स्थान पर___ गौरीशंकर की मां वर्षो पहले, गौरीशंकर को छोड़कर जा है!! आज सौभाग्यवती का स्वास्थ्य बहुत ही बुरा है, उसकी श्वास बार-बार ऊपर-नीचे हो रही है,उसकी नब्ज भी कमजोर पड़ रही है, वहीं बैठे गौरीशंकर को सौभाग्यवती ने धीरे से पुकारा,स्वामी!! हां, सुभागी,कहो क्या बात है? गौरीशंकर ने पूछा। आप मेरे समीप आकर बैठिए, सौभाग्यवती बोली। गौरीशंकर, सौभाग्यवती के समीप आकर बैठ गया। सौभाग्यवती बोली,स्वामी एक इच्छा है! हां कहो, गौरीशंकर ने कहा!! मुझे धरती पर लिटा दीजिए और आप खड़े हो जाइए,आपके चरणों की धूल अपने माथे पर ...और पढ़े
तृप्ति - (अंतिम भाग)
अच्छा तो तुम्हारा नाम कादम्बरी हैं, देवव्रत बोला। हां,क्यो? कादम्बरी बोली!! ऐसे ही, बहुत ही नाम है तुम्हारा,कादम्बरी का अर्थ होता है कोयल लेकिन तुम्हारे स्वर तो बिल्कुल भी मीठे नहीं है, तुम्हारे मुख से सदैव कड़वे बोल ही निकलते हैं,देववृत बोला। हां..... हां....क्यो नही?आपके बोल तो मधु में डूबे हुए होते हैं,कादम्बरी बोली। उन दोनों की सारी नोंक-झोंक कमल सुन रही थी और मन-ही-मन मुस्कुरा भी रही थी फिर कमल ने पूछा, पंडित जी आपकी उमर क्या होगी? देवव्रत बोला, पहले तो आप मुझे पंडित जी ना कहकर "देव" कहे! क्योंकि मैं तो अब आपको ...और पढ़े
तृप्ति - भाग (४)
रोते हुए कमलनयनी मंदिर से वापस आ गई,उसे आज बार बार रोना आ रहा था,वो कितने अच्छे मन से गई थी लेकिन पुरोहित जी ने दूर से ही देखकर बाहर निकाल दिया,इन सबका वो पुरोहित जी से उत्तर चाहती थी और उसने मन बना लिया को वो उनके निवास जाकर इस प्रश्न का उत्तर पूछेगी क्योंकि मंदिर में तो उसका प्रवेश निषेध है और महल में उनको अपने कक्ष में बुलाना उचित नहीं होगा। उसने मयूरी से पता करवाया कि पूजा-पाठ करके वो कब अपने निवास को निकलते हैं,हम तभी पहुंचेंगे, उनके घर, मयूरी सब कुछ पता करके ...और पढ़े