साक्षात्कार के बाद कोलकाता से खुशी खुशी मैं वापस लौट रहा था । राजधानी एक्सप्रेस के प्रथम श्रेणी के जिस केबिन में मैं चढा, उसमें पहले से एक और आदमी मौजूद था । जल्दी ही पता चला कि वह मेरी सीट पर बैठा है। मैने उसे कहा भाई साहब आप अपनी सीट पर नहीं हैं । यह मेरी सीट है । उसने मेरी ओर देखा और शायद क्षमाप्रार्थी होते हुए दूसरी सीट पर चला गया । गाड़ी चल पड़ी । तबतक मैने अपना सामान भी सेट कर लिया था। मेरे मन में एक अजीब प्रकार की प्रसन्नता थी । मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं नौकरी लेकर आ रहा हूं।

Full Novel

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महत्वाकांक्षा - 1

महत्वाकांक्षा टी शाशिरंजन (1) साक्षात्कार के बाद कोलकाता से खुशी खुशी मैं वापस लौट रहा था । राजधानी एक्सप्रेस प्रथम श्रेणी के जिस केबिन में मैं चढा, उसमें पहले से एक और आदमी मौजूद था । जल्दी ही पता चला कि वह मेरी सीट पर बैठा है। मैने उसे कहा भाई साहब आप अपनी सीट पर नहीं हैं । यह मेरी सीट है । उसने मेरी ओर देखा और शायद क्षमाप्रार्थी होते हुए दूसरी सीट पर चला गया । गाड़ी चल पड़ी । तबतक मैने अपना सामान भी सेट कर लिया था। मेरे मन में एक अजीब प्रकार की ...और पढ़े

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महत्वाकांक्षा - 2

महत्वाकांक्षा टी शशिरंजन (2) इस बीच हमारी मुलाकात रोज होने लगी । हम दोनों के मुलाकात के लिए इंडिया सबसे अच्छा स्थान बन गया था । कभी कभी वहां कार्यालय के कुछ अन्य लोग भी हमारे साथ आ जाते थे । लेकिन दो पेड़ों के बीच स्थित पत्थर हमारा स्थान था; जहां मैं और प्रियंका कार्यालय के बाद अक्सर साथ साथ बैठते थे और यह बैठक उसी की पहल पर होती थी । हम एक दूसरे के बड़े अच्छे दोस्त बन गए थे । दोस्ती के अलावा हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं दिखता था चाहे दोनों तरफ दिल में ...और पढ़े

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महत्वाकांक्षा - 3

महत्वाकांक्षा टी शशिरंजन (3) मैने कहा जरूरी नहीं कि हर वो आदमी जो तुम्हारे कहने के अनुसार काम करता वह तुम्हें प्यार भी करता हो । पति पत्नी के बीच प्यार के लिए पैसे की नहीं आपसी समझ की आवश्यकता है । मैने फिर पूछा तुम्हें इस्तीफा कब देना है । उसने कहा आज मैने भेज दिया है । मैने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा - क्या ? उसने कहा –हां, बॉस को फैक्स कर दिया है । कल शाम को जाना है । पूरा दिन तैयारी में लगी रहूंगी इसलिए तुमसे मुलाकात नहीं होगी यही सोच कर अभी ...और पढ़े

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महत्वाकांक्षा - 4 - अंतिम भाग

महत्वाकांक्षा टी शशिरंजन (4) तभी प्रियंका ने अचानक अपने चेहरे का भाव बदलते हुए कहा - जिंदगी के मजे नहीं होते हैं पंकज बाबू । इसके लिए पैसों की आवश्यकता होती है और आपकी जितनी सैलरी है उतने पैसे मैं केवल अपने कपड़ों पर ही खर्च कर देती हूं । उसकी बात सुन ...और पढ़े

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