अपूर्व के मित्र मजाक करते, 'तुमने एम. एस-सी. पास कर लिया, लेकिन तुम्हारे सिर पर इतनी लम्बी चोटी है। क्या चोटी के द्वारा दिमाग में बिजली की तरंगें आती जाती रहती हैं?' अपूर्व उत्तर देता, 'एम. एस-सी. की किताबों में चोटी के विरुध्द तो कुछ लिखा नहीं मिलता। फिर बिजली की तरंगों के संचार के इतिहास का तो अभी आरम्भ ही नहीं हुआ है। विश्वास न हो तो एम. एस-सी. पढ़ने वालों से पूछकर देख लो।' मित्र कहते, 'तुम्हारे साथ तर्क करना बेकार है।' अपूर्व हंसकर कहता, 'यह बात सच है, फिर भी तुम्हें अकल नहीं आती।'
Full Novel
पथ के दावेदार - 1
अपूर्व के मित्र मजाक करते, 'तुमने एम. एस-सी. पास कर लिया, लेकिन तुम्हारे सिर पर इतनी लम्बी चोटी है। चोटी के द्वारा दिमाग में बिजली की तरंगें आती जाती रहती हैं?' अपूर्व उत्तर देता, 'एम. एस-सी. की किताबों में चोटी के विरुध्द तो कुछ लिखा नहीं मिलता। फिर बिजली की तरंगों के संचार के इतिहास का तो अभी आरम्भ ही नहीं हुआ है। विश्वास न हो तो एम. एस-सी. पढ़ने वालों से पूछकर देख लो।' मित्र कहते, 'तुम्हारे साथ तर्क करना बेकार है।' अपूर्व हंसकर कहता, 'यह बात सच है, फिर भी तुम्हें अकल नहीं आती।' ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 2
उपद्रव रहित एक सप्ताह के बाद एक दिन ऑफिस से लौटने पर तिवारी ने प्रसन्न होकर कहा, 'आपने सुना बाबू?' 'क्या' 'साहब का पैर टूट गया। अस्पताल में हैं। देखें बचता है या नहीं।' 'तुझे कैसे पता लगा?' तिवारी बोला, 'मकान मालिक का मुनीम हमारे जिले का है। वह आया था किराया लेने, उसी ने बताया है।' 'हो सकता है,' कहकर अपूर्व कपड़े बदलने अपने कमरे में चला गया। ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 3
भारती हंस पड़ी। बोली, 'यदि म्लेच्छ जीवनदान दे तो उसमें कोई दोष नहीं, लेकिन मुंह में जल देते ही होना चाहिए।' फिर जरा हंसकर बोली, 'अच्छा, मैं जा रही हूं। अगर कल समय मिला तो एक बार देखने आऊंगी।' यह कहकर जाते-जाते अचानक घूमकर बोली, 'और न आ सकूं तो तिवारी के अच्छा हो जाने पर उससे कह दीजिएगा कि अगर आप न आ जाते तो मैं न जाती। लेकिन म्लेच्छ का भी तो एक समाज है। आपके साथ एक ही कमरे में रात बिताने में वह लोग भी अच्छा नहीं मानते। कल सवेरे आपका चपरासी आएगा तो तलवलकर बाबू को खबर दे दीजिएगा। सब व्यवस्था करेंगे। अच्छा नमस्कार।' ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 4
थोड़ी दूर चलकर अपूर्व ने सौजन्यतापूर्वक कहा, 'आपका शरीर इतना अस्वस्थ और दुर्बल है कि इस हालत में और चलने की जरूरत नहीं है। यही रास्ता तो सीधे जाकर बड़े रास्ते से मिल गया है। मैं चला जाऊंगा।' तनिक मुस्कराकर डॉक्टर ने कहा, 'जाने से ही क्या चला जाया जा सकता है अपूर्व बाबू! सांझ को यह रास्ता सीधा था। लेकिन रात को पठान-हब्शी इसे टेढ़ा बना देते हैं। चले चलिए।' 'यह लोग क्या करते हैं, मारपीट?' ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 5
कहते-कहते भारती की मुखाकृति कठोर और गले की आवाज तीखी हो उठी, 'इस लड़की की मां और यदु ने अपराध किया है वह क्या केवल इन लोगों को दंड देकर समाप्त हो जाएगा? डॉक्टर साहब को जब तक मैंने नहीं पहचाना था तब तक मैं भी इसी तरह सोचती थी। लेकिन आज मैं जानती हूं कि इस नरककुंड में जितना पानी है उसका भार आपको भी स्वर्ग के द्वार से खींचकर ले आएगा और इस नरककुंड में डुबो देगा। आप में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि इस दुष्कृति का ऋण चुकाए बिना ही मुक्ति पा जाएं। हम लोग अपनी ही गरज से यहां आते हैं अपूर्व बाबू! यह उपलब्धि ही हम लोगों के पथ के दावे की सबसे बड़ी साधना है। चलिए।' ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 6
अपूर्व के इस तरह बाहर चले जाने पर सभी आश्चर्य में पड़ गए। बैरिस्टर कृष्ण अय्यर ने पूछा, 'यह है डॉक्टर? बहुत ही भावुक।' उसकी बात में स्पष्ट उलाहना था कि ऐसे लोगों का यहां क्या काम है?' डॉक्टर थोड़ा हंस पड़े। प्रश्न का उत्तर दिया तलवलकर ने, 'यह हैं मिस्टर अपूर्व हालदार! हमारे ऑफिस में मेरे सुपीरियर अफसर हैं। लेकिन बहुत अन्तरंग हैं। मेरे रंगून के प्रथम परिचय की कहानी नहीं सुनी। यह एक....' सहसा भारती पर नजर पड़ते ही रुककर उसने कहा, 'वह जो कुछ भी हो, प्रथम परिचय के दिन से ही हम लोग मित्र हैं।' ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 7
जलमार्ग से आने वाले शत्रु के जलयानों को रोकने के लिए नगर के अंतिम छोर पर नदी के किनारे का एक छोटा-सा किला है। उसमें संतरी अधिक नहीं रहते। केवल तोपें चलाने के लिए कुछ गोरे गोलंदाज रहते हैं। अंग्रेजों के इस विघ्नहीन शांतिकाल में यहां विशेष कड़ाई नहीं थी। प्रवेश की मनाही है। लेकिन अगर कोई भूला-भटका व्यक्ति सीमा के अंदर पहुंच जाता तो उसे भगा देते हैं। बस इतना ही। भारती कभी-कभी अकेली यहां आ बैठती थी। जिन लोगों पर किले की रक्षा का भार था उन लोगों ने उसे देखा न हो, ऐसी बात नहीं थी। लेकिन शायद भले घर की महिला समझकर वह लोग आपत्ति नहीं करते थे। सूर्य अभी-अभी अस्त हुआ था। अंधेरा होने में अभी कुछ देर थी। पक्षियों की आवाजें इधर-उधर मंडरा रही थीं। ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 8
जिन-जिन लोगों ने कमरे में प्रवेश किया वह सभी अच्छी तरह जाने-पहचाने लोग थे। डॉक्टर ने कहा, 'आओ।' लेकिन उनके का भाव देखते ही भारती समझ गई, कम-से-कम आज वह इसके लिए तैयार नहीं थे। सुमित्रा के आने के बारे में उन्हें पता था। लेकिन सभी लोग उनके पीछे-पीछे चलते हुए इस पार आ इकट्ठे हुए हैं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी। किसी भी तरह की कोई आकस्मिक घटना नहीं हुई है इसलिए उनकी जानकारी के बिना ही किसी तरह का गहन परामर्श हो चुका है। इसमें संदेह नहीं है। आगंतुक लोग आकर चुपचाप फर्श पर बैठ गए। किसी के आचरण से रत्ती भर भी आश्चर्य या उत्तेजना प्रकट नहीं हुई। यह बात स्पष्ट रूप से समझ में आ गई कि डॉक्टर के संबंध में भले न हो लेकिन डॉक्टर के आने के संबंध में वह पहले ही जान गए थे। अपूर्व के मामले को लेकर दल में इस प्रकार मतभेद पैदा हो जाएगा यह आशंका भारती के मन में थी। शायद आज ही इसका निश्चित निर्णय हो जाएगा। यह सोचकर भारती के हृदय में कंपकंपी होने लगी। ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 9
भारती प्रसन्नता भरे स्वर में पुकार उठी, 'शशि बाबू, हम लोग आ गए। खिलाने-पिलाने का इंतजाम कीजिए। नवतारा कहां नवतारा!....नवतारा....!!' शशि बोले, 'आइए, नवतारा यहां नहीं है।' डॉक्टर ने मुस्कराते हुए पूछा, 'गृह गृहिणी शून्य क्यों है कवि? उसे बुलाओ। आकर हम लोगों का स्वागत करके अंदर ले जाए। नहीं तो हम यहीं खड़े रहेंगे। शायद भोजन भी नहीं करेंगे।' शशि बोले, 'नवतारा नहीं है डॉक्टर, वह सब घूमने गए हैं।' उसका चेहरा देखकर भारती डर गई। उसने पूछा, 'वह घूमने चली गई? आज के दिन? कैसी अद्भुत समझ है?' ...और पढ़े
पथ के दावेदार - 10 - Last Part
भोजन की थाली उसी तरह पड़ी रही। उसकी आंखों से आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदे गालों पर से झर-झर नीचे लगीं। अपूर्व की मां को उसने कभी देखा नहीं था। पति-पुत्र के कारण उन्होंने जीवन में बहुत कष्ट उठाया था। इसके अतिरिक्त उनके संबंध में विशेष कुछ नहीं जानती थी। लेकिन कितनी ही बार, अपने एकांत कमरे में, रात के समय जागती हुई उसने उस बूढ़ी विधवा स्त्री के संबंध में कितनी ही कल्पनाएं की थीं। सुख के समय नहीं, दु:ख के समय में भी अगर उनसे भेंट हो-जब उसके सिवा उनके पास और कोई न हो-तब ईसाई होने के कारण वह कैसे दूर हटा सकती हैं-यह बात जान लेने की उसकी बड़ी साध थी। बड़ी साध थी कि दुर्दिन की उस अग्नि-परीक्षा में अपने-पराए की समस्या का वह अंतिम समाधान कर लेगी। धर्म-मतभेद ही इस जगत में मनुष्य का चरम विच्छेद है या नहीं-इस सत्य की परीक्षा कर लेने के लिए ही वह चरम दु:समय उसके भाग्य में आया था, लेकिन वह उसे ग्रहण न कर सकी। इस रहस्य की जीवन में मीमांसा न हो सकी। ...और पढ़े