ये क्या मज़ाक़ है

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वो ध्रुति के घुटनों पे अपनी कुहनी रखके और अपना हाथ अपने गाल पे रखके उसकी आँखों में देखता है. - “फिर ” - “फिर के बच्चे…!!! आँखों में मत देखो. और इतना पास आने की ज़रूरत नहीं है.” ध्रुति उसका हाथ अपने घुटने से हटा के उसके हाथ में रख देती है. - “फिर कहाँ देखूँ ” - “बस, आँखों में मत देखो.” - “ठीक है.” - “और एक ही दिन में तुम सपने में भी आ गए.” अब वो ध्रुति की आँखों को छोड़, बाकी सब हिस्सों को घूर के देखता है. उसकी नाक, उसके होंठ, उसकी गर्दन, उसका सीना. ध्रुति के सीने पे आके उसकी नज़र रुक जाती है. वो एक गहरी साँस लेता है. - “फिर क्या हुआ ” - “फिर कुछ नहीं हुआ. अब तुम जाओ.” - “बहुत बड़े हैं!” - “स्टूपिड हो तुम. एक शरीफ लड़की को इस तरह देखते हैं ” ध्रुति जाने के लिए खड़ी हो जाती है. - “फिर किस तरह.... ” वो भी खड़ा हो जाता है. ध्रुति उसके चेहरे के पास आ जाती है और उसके होंठों पे एक प्यारा सा और देर तक चलने वाला ‘किस्स’ करती है.