अब तो निपटा दो

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धन्नियों से लटके ललउवा के षव से लिपटा उसका बाप रज्जन कभी बेटे की निकली आंखों और लटकी जीभ की ओर देखता तो कभी गांव के खैरख्वाह जबर बुद्धन सिंह और षंकरदयाल की ओर। आंखों के आंसू सूख चुके थे। बुढ़ापे का चिराग धोखा दे गया था। पत्नी के साथ रज्जन बेटे के विवाह की तैयारियां कर रहा था। धन से गरीब मगर दिल से राजा देवी सिंह सरीखा खर्चीला स्वभाव। विपन्न गला काट-काटकर पैसा नहीं इकठ्ठा करते सो उदारमना होते हैं।