सन्ध्या का समय है कचहरी के सब लोग अपना काम बन्द करके घर को चलते जाते हैं. सूर्य के प्रकाश के साथ लाला मदनमोहनके छूटनें की आशा भी कम हो जाती है. ब्रजकिशोर नें अब तक कुछ उपाय नहीं किया. कचहरी बन्द हुए पीछे कल तक कुछ न हो सकेगा. रात को इसी छोटीसी कोठरी मैं अन्धेरे के बीच जमीन पर दुपट्टा बिछा कर सोना पड़ेगा. कहां मित्र मिलापियों के वह जल्से ! कहां पानी प्यानें के लिये एक खिदमतगार तक पास न हो ! इन बातों के बिचार सै लाला मदनमोहन का व्याकुल चित्त अधिक अकुलानें लगा.