परीक्षा-गुरु - प्रकरण-30

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सन्‍ध्‍या समय लाला मदनमोहन भोजन करनें गए तब मुन्शी चुन्‍नीलाल और मास्‍टर शिंभूदयाल को खुलकर बात करनें का अवकाश मिला. वह दोनों धीरे, धीरे बतलानें लगे. मेरे निकट तुमनें ब्रजकिशोरसै मेल करनें मैं कुछ बुद्धिमानी नहीं की. बैरी के हाथ मैं अधिकार देकर कोई अपनी रक्षा कर सक्ता है ? मास्‍टर शिंभूदयाल नें कहा. क्‍या करूं ? इस्‍समय इस युक्ति के सिवाय अपनें बचाव को कोई रास्‍ता न था. लोगों की नालिशें हो चुकीं, अपनें भेद खुलनें का समय आ गया.