परीक्षा-गुरु - प्रकरण-12

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सुख दु:ख तो बहुधा आदमी की मानसिक बृत्तियों और शरीर की शक्ति के आधीन हैं.एक बात सै एक मनुष्‍य को अत्‍यन्त दु:ख और क्‍लेश होता है वही बात दूसरे को खेल तमाशे की सी लगती है इस लिये सुख दु:ख होनें का कोई नियम नहीं मालूम होता मुन्शी चुन्‍नीलाल नें कहा. मेरे जान तो मनुष्‍य जिस बात को मन सै चाहता है उस्‍का पूरा होना ही सुख का कारण है और उस्‍मैं हर्ज पड़नें ही सै दुःख होता है मास्‍टर शिंभूदयाल नें कहा.