दुर्गादास अध्याय 2

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दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है तथा इसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है। दुर्गादास उस संदुकची को लेकर चला गया। रास्ते में दो राजपूतों को मुगल सिपाही घेरे थे जिसमें से एक मर गया था और महासिंह नामक घायल था। उन्हे बचाते हुए दुर्गादास नें जोरावर को मार डाला और महासिंह को साथ ले अपने घर पहुँचा। सुबह होते ही दुर्गादास अपने बेटे तथा भाई के साथ माँ से विदा लेकर जाने लगा और वह संदुकची अपने नौकर नाथू को दे दी। उनके जाने के बाद शमशेर खाँ आया और दुर्गादास की माँ को बेरहमी से मार डाला शमशेर के एक सैनिक खुदाबक्श के संग महाँसिह माड़ो चले गए और नाथू दुर्गादास को माँ की मौत की खबर देने चला गया। दुर्गादास माता के मृत्यु की बात से आगबबूला हो सीधा जाकर शमशेर खाँ को मार डाला। इसी प्रकार कई महान काम करते हुए उसने औरंगज़ेब को मारवाड़ से भगा दिया। अब दुर्गादास बूढ़ा हो चला था उसने अजीतसिंह को राजगद्दी पर बिठा दिया, अजीतसिंह घमंड में आकर दुर्गादास को मारने की कोशिश की पर आखिर उसे भी पता चल ही गया कि जिसके डर से औरंगज़ेब भाग गया उसे वो क्या कर सकेगा। वीर दुर्गादास जोधपुर से चले गए और थोड़े दिन राणा जयसिंह के यहाँ रहे और फिर उज्जैन चले गए, बचे दिनों में श्रद्धा से महाकालेश्वर की पूजा की। संवत् 1765 में उनका देहांत हो गया। वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु तो हो गई परंतु उनकी वीरगाथा सदा के लिये अमर रहेगी। अंत में प्रेमचंद लिखते हैं जिसने यशवन्तसिंह के पुत्र की प्राण-रक्षा की और मारवाड़ देश का स्वामी बनाया, आज उसी वीर का मृत शरीर क्षिप्रा नदी की सूखी झाऊ की चिता में भस्म किया गया। विधाता! तेरी लीला अद्भुत है।