द्वारावती - 81

81इन चार वर्षों में उसने अठारह किलोमीटर का मार्ग पूर्ण कर लिया था। दण्डवत परिक्रमावासियों के साथ वह चलता रहा, उनकी सहायता करता रहा। उसे परिक्रमा पूर्ण करने की कोई शीघ्रता न थी। प्रत्येक परिक्रमा वासी उत्सव से अवश्य मिलता था, क्षण भर के लिए भी। वह सब से स्नेह से मिलता, कृष्ण नाम जपता और परिक्रमावासियों का उत्साह वर्धन करता। इस प्रकार के व्यवहार से परिक्रमावासियों के लिए उत्सव चर्चा का, आकर्षण का तथा सम्मान का केन्द्र बन गया। लोग तो यह भी कहने लगे कि इस मार्ग पर भविष्य में एक मंदिर बनेगा, उत्सव मंदिर। जो उत्सव के स्मरण में