अधूरी चाहत और मरता परिवार - भाग 3

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पछतावे का बोझजेल की सलाख़ों के पीछे अनामिका के लिए समय रुक सा गया था। वह दिन-रात आरव के बारे में सोचती, उसकी मासूम हंसी और उसकी आवाज़ उसके कानों में गूंजती रहती। हर गुजरते दिन के साथ उसका पछतावा बढ़ता गया। उसे अब एहसास हो रहा था कि उसने क्या खो दिया है और उसकी गलतियों की कीमत कितनी बड़ी थी। जेल के छोटे से क़मरे में वह अकेलेपन से जूझती रही। वहां की ठंडी दीवारें उसकी गवाह थीं, जहां वह खुद से सवाल करती—क्या वह वाकई प्यार की तलाश में थी या यह महज उसके अहंकार की भूख थी?