74उत्सव काशी में बस गया था। काशी को अत्यंत निकट से उसने देखा - परखा। उसके भीतर एक सर्जक ने जन्म ले लिया। उसने काशी के जीवन पर पुस्तक लिखना प्रारम्भ किया। प्रतिदिन वह काशी के विविध मंदिरों में तथा विविध तट पर भ्रमण करता। वहाँ जी रहे, वहाँ प्रवासी के रूप में आए व्यक्तियों की चेष्टाओं को वह निहारता, निरीक्षण करता । उससे उसे उन लोगों की जीवन कथा का ज्ञान होता था। रात्रि भर वह उन व्यक्तियों की कथाओं को लिखता रहता। जैसे जैसे वह काशी के जीवन को लिखता गया वैसे वैसे उसे प्रतीत होने लगा कि ‘यहाँ जीवन