71संध्या आरती सम्पन्न कर जब गुल लौटी तो उत्सव आ चुका था। गुल की प्रतीक्षा कर रहा था। “गुल, मुझे तुमसे कुछ बात कहनी है। कुछ समय बैठ सकती हो?”गुल घर के बाहर ही रुक गई, “प्रथम यह कहो कि कहाँ गए थे?”“वही तो बताना चाहता हूँ, सुनो। मैं रूपेण बंदर गया था। प्रेमभिक्षुजी से मिलने।”“तुम्हें मिले वह? मैं भी मिलना चाहती हूँ। तुम बता कर जाते तो मैं भी चलती। मुझे भी …।”“गुल, बाबा मुझे नहीं मिले। मैं ने लम्बी प्रतीक्षा की । मैं समुद्र के उस भाग के प्रत्येक स्थान पर गया । किंतु वह कहीं नहीं मिले।”“अर्थात् वह