दरिंदा - भाग - 2

  • 1.2k
  • 1
  • 807

प्रिया अपने सामने वाले खाली घर में किसी के आ जाने से बहुत खुश थी। अब तक भी वह उस घर की तरफ़ देख रही थी। आज उसका उत्साह चरम सीमा पर था।उसने चहकते हुए विनोद से कहा, "पापा आख़िर इस घर का भाग्य खुल ही गया। अब हमारे घर की तरह वहाँ से भी बातें करने और हंसने की आवाज़ें आएंगी। शाम को कुर्सी डालकर वे लोग भी बाहर आँगन में बैठेंगे। कितना अच्छा लगेगा ना पापा?" "हाँ बेटा।" "पापा मैं उन लोगों से दोस्ती कर लूंगी।" "हाँ-हाँ कर लेना।" तभी अचानक उस घर से रोने की आवाज़ आने