द्वारावती - 51

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51गुल की आँखें बंद थी। मंत्रोच्चार हो रहा था। केशव किसी समाधि में लीन हो गया था। उसे जो अनुभव हो रहा था वह उसने इससे पूर्व कभी नहीं किया था। उस अकथ्य स्थिति में प्रसन्नता थी। गुल ने अंतिम मंत्र का गान किया-अहम निर्विकल्पो निराकार रूपो, विभूत्वा च सर्वत्र स्सर्वेंद्रियाणम,न च संगतर्नेव मुक्ति: न मेय: चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम।गुल शिवोहम शिवोहम का जाप किए जा रही थी। सभी दिशाओं से उस ध्वनि की प्रतिध्वनि होने लगी। तट, पानी, समुद्र, समीर सभी एक ही ध्वनि में गा रहे थे - ‘शिवोहम शिवोहम…’गुल ने मंत्र गान सम्पन्न किया। कुछ क्षण वह आँखें