उजड़े हुए शहरो में आशियाना न ढूंढ़ा कर l इन्सानों के चहरों को नजदीक से पढ़ा कर ll जो होगा देखा जायेगा कल की चिता छोड़कर l जीए जा मस्ती में फ़िक्र को हवा में उड़ा कर ll मुक़द्दर में सुहानी सुबह है यही सोचकर आज l चरागों को बुझाकर चैन की नींद लिया कर ll ख़्वाबीदा हसरतों को दरख़्तों से उड़ा कर l अपनी ही दुनिया में मौज मस्ती में रहा कर ll वक्त का क्या भरोसा कितनी साँसे बची है तो l गिले शिकवे भूलकर सबसे हँसकर मिला कर ll १-९-२०२४ ज़मीं से