में और मेरे अहसास - 110

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उजड़े हुए शहरो में आशियाना न ढूंढ़ा कर l इन्सानों के चहरों को नजदीक से पढ़ा कर ll   जो होगा देखा जायेगा कल की चिता छोड़कर l जीए जा मस्ती में फ़िक्र को हवा में उड़ा कर ll   मुक़द्दर में सुहानी सुबह है यही सोचकर आज l चरागों को बुझाकर चैन की नींद लिया कर ll   ख़्वाबीदा हसरतों को दरख़्तों से उड़ा कर l अपनी ही दुनिया में मौज मस्ती में रहा कर ll   वक्त का क्या भरोसा कितनी साँसे बची है तो l गिले शिकवे भूलकर सबसे हँसकर मिला कर ll १-९-२०२४    ज़मीं से