साथिया - 92

  • 828
  • 367

उधर माही अपने कमरे में आई और उसने दरवाजा बंद कर लिया। दिल की धड़कनें  बेकाबू हुए  जा रही थी और एक अजीब से एहसास ने उसे घेरा हुआ था। अक्षत को देखकर उसे इतना अजीब क्यों लग रहा था वह समझ नहीं पा रही थी। हालांकि उसका बहुत ज्यादा लोगों से मिलना जुलना और बातचीत नहीं थी। उसकी जिंदगी  अबीर  मालिनी शालू और घर के दो चार  सर्वेंट  और उसके डॉक्टर तक ही सीमित थी। कई बार अनजान और अजनबी लोगों को देखकर वह घबरा जाती थी पर अक्षत को देखकर उसे ऐसी कोई घबराहट और बेचैनी नहीं हुई जैसे