रात के दस बज चुके थे... जैसे जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही थीं वैसे वैसे जतिन और मैत्री दोनो के दिलो मे एक दूसरे से बात करने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.... जहां एक तरफ मैत्री अपनी मम्मी, चाची, नेहा और सुरभि से बात करती जा रही थी और बार बार फोन पलट के टाइम देखती जा रही थी और मन ही मन मना रही थी कि "जतिन जी टाइम होता जा रहा है प्लीज कॉल करिये ना... प्लीज" इधर दूसरी तरफ जतिन की नजर भी अपने मोबाइल की घड़ी पर टिकी हुयी थी जो हर थोड़ी