"सच में नई पीढ़ी हमसे बहुत अच्छी है। इसे कम से कम हमारी जैसी लत तो नहीं है कि इतने बजे पेप्सी चाहिए, इतने बजे पिज़्ज़ा! हमें देखो, चार बजे नहीं कि बस, चाय चाहिए। ऐसी तलब लगती है कि न मिले तो सिर फटने लगता है। दिमाग़ भन्ना जाता है।" सोच ही रहा था पर किस्मत अच्छी थी कि थोड़ी ही देर में जंगल भरे रास्ते को चीरती बस एक ऐसी जगह पर आ रुकी, जहां छोटी- मोटी दो चार दुकानों के साथ एक पेड़ के नीचे चाय की गुमटी भी थी। मुझे मानो मन की मुराद मिल गई।मुझे