आज भले ही दुल्हन की तरह सजते संवरते हुये मैत्री को अपने स्याह अतीत की याद आ रही थी और ब्यूटीपार्लर मे शीशे के सामने बैठी मैत्री अपने आप को एकटक देखे जा रही थी... वो खुद अपने आपको आज फिर से दुल्हन की सजावट मे देखकर हद से जादा भावुक हो रही थी... हर लड़की की तरह मैत्री को भी सुहागन का चोला बहुत प्यारा था जो नियति के क्रूर हाथों ने उससे छीन लिया था... वो मैत्री आज शीशे मे अपने आप को फिर से उसी सुहागन के चोले मे देखकर मानो विश्वास ही नही कर पा रही