प्रेम गली अति साँकरी - 156 (अंतिम भाग)

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156==== ================= मि.कामले और उनका बेटा नाश्ता करने के बाद मुझे दिलासा देते हुए बाहर निकल गए थे कि मैं चिंता न करूँ, यदि कुछ बदलाव करना हो तो बिना संकोच के बता दूँ |  आज कुछ फ़ाइलें चैक करनी थी, सब अपने-अपने प्रोजेक्ट्स में व्यस्त थे | अम्मा-पापा की अनुपस्थिति में सब अपना ‘बैस्ट’देना चाहते थे | अभी ड्राअर से फ़ाइलें निकालकर मेज़ पर रखी ही थीं कि फिर नॉक हुई |  ”कौन?” “मैं हूँ दीदी---”दिव्य की आवाज़ थी |  “आ जाओ न आंदर---” वह खाली हाथ था, मुझे लग रहा था वह वीडियोज़ लेकर आया होगा |  “चलिए