प्रेम गली अति साँकरी - 155

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155=== ============== खुशी को लपकना पड़ता है, खुशी आई और हम आँखें मूँदे बैठे रहे तो जैसे बिल्ली को देखकर चूहा आँखें मूँद लेता है, ऐसा ही कुछ हो जाता है | अवसर मिलते हैं समय-समय पर लेकिन हम उन्हें हाथ से जाने देते हैं | मैंने यही तो किया था | मन में आशा की रोशनी जैसे कहीं छिपी हुई हो और पत्तों के बीच से छनकर मेरे भीतर बिखर रही हो उस रोशनी को मैंने अँधियारे से भर दिया था, कुछ प्रयास रहता तो ! दिल की धड़कनें सप्तम पर पहुँच गईं जब मैंने देखा कि मि.कामले ने