प्रेम गली अति साँकरी - 154

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154 ==== =============== वही तो मुश्किल था कि उत्पल नहीं था, उसके बिना उसके चैंबर में जाना यानि खुद को ही खोजने लगना | दिव्य के साथ जाना जरूरी था| मैं उसके साथ गई और उसे वहाँ काम करने वाले लड़कों से मिलवा दिया| उत्पल के साथ जो काम करता था, वह पहले से ही उससे परिचित था, दूसरे से भी मुलाकात हो गई| पूरी टीम तो तभी होती थी जब उत्पल को अधिक काम होता और वह सबको बुला लेता|  “कैसा सूना-सूना लगता है न दीदी उत्पल दादा के बिना---” चैंबर में घुसते ही उसने कहा|  मैं तुझे क्या