प्रेम गली अति साँकरी - 147

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147==== =============== आदमी की ज़िंदगी कहानियों से किस तरह अटी पड़ी है, इस बारे में न जाने कितने-कितने उत्तरविहीन प्रश्न और कुछ अलग सी बातें मेरे दिमाग के गलियारे में टहलने लगीं थीं और पापा का तो कमाल ही था| अब हर दिन मुझसे बात करना उनका शगल बन गया था| बात ही कुछ ऐसी थी कि कौन भरोसा करता? इसीलिए मैंने किसी को बताना ठीक नहीं समझा था|  यह बात बिलकुल सही थी कि भाई और एमिली की उम्र के फ़र्क को देखते हुए हम सब परिवार वाले एक बार को चौंक गए थे लेकिन उतनी ही जल्दी हम