142===== ================ संस्थान में तो सब ठीक-ठाक चल रहा था जैसे अम्मा के अनुसार हमेशा चलता रहा था | सब कर्मचारी वर्षों से अपने काम में इतने माहिर हो चुके थे कि उन्हें किसी विशेष काम के लिए ही कुछ कहने या पूछने की ज़रूरत होती वरना सब काम अपनी गति से चलते रहते | इस प्रकार बहुत कम स्थानों पर हो पाता है वर्ना आध्यात्म के आश्रमों में तक कुछ न कुछ गड़बड़ी होती ही रहती हैं | “स्वार्थ ही सबसे बड़ी परेशानी लेकर आता है बेटा, नि:स्वार्थ भाव सबसे बड़ी कसौटी है!”हमारी दादी! सच में कमाल ही थीं