विराटज्योति को चिन्तित देखकर मनोज्ञा बनी कालबाह्यी उसके पास जाकर बोली.... "इतने चिन्तित ना हों महाराज! मैं आपकी व्यथा भलीभाँति समझ सकती हूँ,जब कोई हमारे साथ विश्वासघात करता है तो ऐसा ही प्रतीत होता है" "मनोज्ञा! अभी तुमसे मेरा वार्तालाप करने का मन नहीं है,तुम शीघ्रतापूर्वक अतिथि कक्ष से बाहर चली जाओ एवं रानी चारुचित्रा को भी अपने संग ले जाओ,मैं अभी एकान्त चाहता हूँ" इसके पश्चात् मनोज्ञा उस स्थान से उठकर चारुचित्रा के समीप आकर बोली... "रानी चारुचित्रा! चलिए आप अपने कक्ष में चलकर विश्राम कीजिए", चारुचित्रा का भी मन नहीं था विराटज्योति से वार्तालाप करने का इसलिए वो