प्रेम गली अति साँकरी - 122

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122-== ============== कुछ होश ही नहीं था मुझे, न जाने रेशमी झालरदार सुंदर पलंग पर सहमी-सिकुड़ी पड़ी मैं किन ऊबड़-खाबड़ रास्तों में कभी गिरती-पड़ती, अजीब सी मन:स्थिति में पड़ी रही होऊँगी? सुंदर कक्ष में एक अजीब प्रकार का अरोमा, हाँ, अजीब प्रकार की गंध तो थी जो कुछ स्पष्ट न थी लेकिन कुछ अलग थी| एक भिन्न वातावरण, उस पर एक प्रेम में निचुड़ी हुई अजीब स्त्री ! हाँ, स्त्री ही तो, लड़की तो रही नहीं थी जिसको न अपना कुछ पता था, न ही कुछ पाने, खोने का| भविष्य का क्या, वर्तमान की स्थिति से भी तो अवगत नहीं