ठंडी सड़क (नैनीताल) - 8

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ठंडी सड़क (नैनीताल)-8मैं उस दिन अकेले बैठा था। ठंडी सड़क कुछ सर्पीली सी मेरे अन्दर घुमाव बना रही थी। नैनीताल ,एक लघुकथा, मेरे अन्दर जगमगाने लगती है। नैनीताल( एक लघुकथा)-१वहाँ मेरा होना और तुम्हारा होनाएक सत्य था,इस बार वहाँ जाऊँगातो सोहन की दुकान परचाय पीऊँगा,रिक्शा स्टैंड पर बैठकुछ गुनगुना लूँगा,बिष्ट जी जहाँ खड़े होते थेवहाँ से दूर तक देखूँगा,यादों की बारात मेंतुम्हें खोजते-खोजतेनीचे उतर आऊँगा।नन्दा देवी के मन्दिर में जासभी देवी देवताओं को धन्यवाद देकहूँगा कि जैसा चाहा वैसा नहीं दियापर जो दिया वह भी मूल्यवान हैजन्मों का फल है,नैनी झील कोनाव से पार करते समयदेख लूँगा वृक्षों के बीच