प्रेम गली अति साँकरी - 118

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118 – ================ आज संस्थान का वातावरण कितना खुला-खिला था सिवाय मेरे दिल के!सारे संस्थान में गहमा-गहमी और लोगों के हाथों-पैरों में बिजलियाँ और चेहरों पर मुस्कान ! अम्मा की इच्छा थी कि उनकी बेटी कुछ तो सजे सँवरे लेकिन मैं अपने मन की टूट-फूट को कैसे रफ़ू करती भला ! जब से उत्पल के करीब हुई थी मैं अपने आपको आईने में कुछ अधिक ही निहारने लगी थी| मैं सचमुच सुंदर थी ! मुझे महसूस होने लगा था और चेहरे की ललाई स्वाभाविक रूप से सबको दिखाई देने लगी थी| जब अम्मा-पापा मेरे खिले चेहरे को लाड़ से देखते,