अब सभी सकुशल अपना अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे,सबसे पहले त्रिलोचना और कौत्रेय के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ,इसी मध्य भैरवी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया,उस बालिका के आने से समूचे राजमहल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई,अचलराज भी अपनी पुष्प सी पुत्री को देखकर फूला ना समा रहा था ,त्रिलोचना भैरवी के पास उसकी पुत्री से भेंट करने आई तब भैरवी ने प्रसन्नतापूर्वक त्रिलोचना से कहा.... "त्रिलोचना! आज से मेरी पुत्री तुम्हारी पुत्रवधू हुई,जब दोनों बालक एवं बालिका वयस्क हो जाऐगें तो तब हम इनका विवाह कर देगें" "हाँ! मुझे कोई आपत्ति नहीं ,किन्तु तुम पहले