सखाराम के इतनी ज़िद करने पर आखिरकार माया ने उस राज़ से पर्दा हटा ही दिया जो वर्षों से उसके सीने में दफ़न था। उसने कहा, “सखा मैं ऐसे हालातों से अच्छी तरह से वाकिफ़ हूँ। मैंने ऐसे हालातों को ज़िया है। तुम्हें तो यही मालूम है ना कि मेरी माँ बीमारी से मर गई। नहीं सखा मेरे बाप ने मोहन की तरह दारू पी पीकर मेरी माँ को मार डाला था। मैं रोज़ अपनी माँ को पिटते हुए देखती थी सखा। मैं रोती थी, गिड़गिड़ाती थी पर मेरे बाप पर किसी बात का असर नहीं होता। वह जल्लाद बेरहमी