सबने मिलकर मोहन का अंतिम संस्कार पूरे विधि विधान के साथ कर दिया। अंतिम संस्कार के बाद जब वे वापस आये तो घर पर मोहन की माँ फूट-फूट कर रो रही थीं। गोविंद ने उन्हें समझाते हुए कहा, “मत रो माँ, हमारे भाग्य में यही लिखा था और लिखे को भला कौन टाल सकता है।” जयंती ने कहा, “अम्मा मोहन भैया इतनी ही उम्र लेकर आए थे बाकी तो कोई ना कोई बहाना मिल ही जाता है।” थक हार कर सभी अपने-अपने बिस्तर पर जाकर सो गए। मोहन का दसवां तेरहवां सब हो गया और उसकी अस्थियाँ भी विसर्जित कर