प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 4

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प्रेमी-आत्मा मारीचिका 04  सुभ्रत का शरीर एक रोमांच से भरा हुआ था, उसके अंदरूनी अंगों में खून का संचार बहुत तेज गति से हो रहा था, इस हालत में कस्तूरी का उसे छोड़ कर चले जाना उसे सही नहीं लगा, पर करता भी तो क्या? अपने मन को मसोस कर वो वहां से चला जाता है। अब आगे... सूरज देवता अपनी रौशनी की छटा को समेट कर रात की चाँदनी के आगोस में आने को बेताब हो कर अस्त होने की कोशिश में थे और उधर दूसरी तरफ सुभ्रत शाम से ही रेत के एक टीले पर बैठा है जहाँ