प्रेम गली अति साँकरी - 112

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112— ================ उत्पल के कंधे को आँसुओं से भिगोने के बाद मैं शायद कुछ सहज हुई, नहीं सहज तो नहीं हुई लेकिन इतने आँसु निकल जाने के बाद मेरे मस्तिष्क ने शायद कुछ सोचना शुरू कर दिया था | कर तो मैं वही रही थी जिससे भागती रही थी फिर इतने दिन इस भाग-दौड़ का क्या अर्थ रहा?  दो-तीन दिनों तक मेरी मनोदशा अजीब सी तो रही लेकिन मैं तो ठान चुकी थी अपने मन में, मैंने शीला दीदी से कहा कि मैं अब इस रिश्ते को लटकाए नहीं रख सकती | उन्होंने जाने कब यह बात अम्मा से बता