प्रेम गली अति साँकरी - 110

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110---- ================ श्रेष्ठ ने मुझसे मिलने का बहुत प्रयास किया लेकिन न जाने क्यों मैं उससे मिलने के नाम से ही बिदकने लगी थी | एक जैसी ही बात दो लोग करें, उसमें से एक आपको नॉर्मल भी क्या प्यारा लगने लगता है तो दूसरे से वितृष्णा होती है | यह गलत ही है वैसे लेकिन होती है तो होती है | इसमें सोच सारी मन की है जो इंसान को चुप तो रहने ही नहीं देता, नचाता ही तो रहता है | शायद मैं इस गोल-गोल नाच से थक चुकी थी और किसी भी स्थिति में अब किसी और