97--- ============ मैंने अपने आपको प्रमेश से बात करने के लिए तैयार तो कर लिया था लेकिन मन से अस्वस्थ महसूस कर रही थी | उत्पल मेरे दिमाग के आसमान पर टिमटिमा रहा था लेकिन जाने क्यों मुझे लगा कि आसमान से टपकने वाली बरखा की बूंदें उसकी आँखों में सिमट आई हैं | मुझे मह्सूस हुआ कि मैं कहीं उन आँसुओं में सिमट तो नहीं जाऊँगी? मैं असहज थी, बहुत असहज---नहीं होना चाहिए था लेकिन थी और कारण था कि अंतरा ने जाने से पहले मुझे बताया था कि कोविड में जो कलकत्ता में गुज़र गईं थीं वो उत्पल