अपने भाई से नाराज मोहन ने दुकान पर जाना भी छोड़ दिया। अब उसे पैसे की तंगी होने लगी। मोहन किसी और की दुकान पर काम करने लगा। थोड़ा बहुत जो भी कमाता शराब में उड़ा देता। घर में कुछ भी सामान नहीं था। बूढ़ी माँ और जयंती, बसंती को ऐसे हाल में भला कहाँ देख सकते थे। उन्होंने घर का जितना हो सकता था, उतना सामान उसे दे दिया। खाने-पीने की चीजें भी गोविंद दुकान से लाकर बसंती के लिए भिजवा दिया करता था। मोहन रोज़ शराब पीने के बाद बसंती को भला बुरा कहता। उसकी सुंदरता पर छींटाकशी