हिंदी नए चाल में ढली।

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यह वाक्य भारतेंदु का है। जो उन्होने कालचक्र नामक जर्नल में लिखा था। ऐसा माना जाता है की शताब्दी के अंत में जिस प्रकार भाषाई द्वैत की समस्या बनी हुई थी। उसमे भारतेंदु एक महत्वपूर्ण भाषा परिवर्तन को इस कथन के मध्यम से इंगित कर रहे है। दरअसल भारतेंदु आरंभिक समय में बाला बोधनी और कवि वचन सुधा नामक पत्रिका निकाल चुके थे। किंतु उन्होंने अपने संपादकीय जीवन की सबसे महत्वपूर्ण पत्रिका हरिश्चंद्र चंद्रिका की शुरवात की। जो आगे चल कर विख्यात हुई। भारतेंदु के अनुसार की कवि कवि वचन सुधा में जिस प्रकार की खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग