अराजकता से आधुनिकता की ओर बढ़ गया हूं। पंरतु व्यव्हार और व्याकरण में पाणिनी द्वारा रचित प्रविष्टियां अभी अभी वही हैं। इत्यादि कहना लिख देना बहुत सरल है परंतु उस इत्यादि में और कितने समीकरण आने हैं। यह बात समाज कल्याण की दृष्टि में अभी बहुत आमूल चूल परिवर्तन करने जैसा है। जन्म से मृत्यु के बीच में स्व कल्याण के लिए व्यक्ति समाज का निर्माण कर चुका है। उसने अपने लिए कुछ नियम बनाए और उनको सम्यमता से निर्वाह करने का मार्ग बताया है। लेकिन मेरे होने न होने में समाज नियमो में कोई बदलाव नहीं करता है। बस