नन्हा आशिक़ पिता से चिपका अंश सिसक पड़ा।जगमोहन बाबू और अथर्व कुछ समझ न पाएं।थोड़ी देर में अंश पहले की भांति दादा साथ खेलने लगा। इधर अथर्व एक दो बार खिड़की से झांका पर उसे कुछ समझ न आया।इधर अंश के व्यवहार में बदलाव साफ झलकने लगा।पहले जहाँ अपनी नन्हीं जरूरतों के लिए दादा या पिता की ओर भागता था वहीं अब वो खिड़की पर बैठने की जिद्द करता। एक दिन अंश पिता के पीछे-पीछे चल रहा था,अथर्व को दफ्तर की देर हो रही थी ,वो आलमीरा से अपने कपड़े निकाल ज्यों ही मुड़ा अंश टकरा कर धम्म से गिर