रात के 12 बज रहे थे और अमित व अवंतिका दोनों किलेकी ओर आहिस्ता आहिस्ता चले जा रहे थे।सारे दिन का अथक परिश्रम भी उन्हें विचलित नहीं कर रहाथादोनों के अंदर एक ही जज्बा था इस अंतिम राज़ को जाननेकाऔर वो यह तो समझ चुके थे कि कि इस राज़ पर पर्दा डालने के लिये ही ये डरावनी अफवाहें फैलाई गई हैं।वातावरण बहुत भयावह था। घुप्प अंधेरी काली स्याह रात।आसमान पर अचानक बादल छा ही गये, ऊपर बादलों के गरजने का शोर तो नीचे चमगादड़ों की आवाजें कानों के पर्दों पर हमला कर रहीं थीं।ऊपर तड़ित की भयंकर गर्जना तो