हमारा वास्तविक स्वरुप अनंत सुख का धाम है, फिर भी हम विनाशी चीजों में सुख खोजते हैं! जब तक हम यह नहीं पहचानते कि हमारा वास्ताविक स्वरूप क्या है, तब तक सभी कुछ क्षणिक और विनाशी ही है। आत्मसाक्षात्कार होने के बाद ही शाश्वत सुख का अनुभव किया जा सकता है। यह जानना कि “मैं कौन हूँ?”, वही आत्मसाक्षात्कार है।